har subah ek taza gulab

ज़माने भर की निगाहों से टालकर लाये
हम उनके प्यार को कितना सँभालकर लाये !

हरेक लहर में क़यामत का शोर उठता था
किसी तरह से ये किश्ती निकालकर लाये

सभी को एक ही चितवन से कर दिया ख़ामोश
यहाँ थे लोग भी क्या-क्या सवाल कर लाये !

वही हैं आप, वही हम, वही हैं प्याले भी
नया कुछ और उन आँखों से ढालकर लाये

फ़िज़ा बहार की तुझसे ही सज रही है, गुलाब !
भले ही फूल कई मुँह भी लाल कर लाये