har subah ek taza gulab

ख़्वाब समझें कि वाक़या समझें
तू ही बतला कि तुझको क्या समझें

तू समझता रहे हमें कुछ भी
हम तुझे क्यों न दिलरुबा समझें !

पूछा उनसे कि आप चुप क्यों हैं
हँस के बोले कि जो कहा, समझें

एक गर्दिश से दूसरी गर्दिश
ज़िंदगी, बस ये सिलसिला समझें

तितलियाँ मुँह फिरा रही हैं, गुलाब !
अब है बदली हुई हवा, समझें