har subah ek taza gulab
बात ऐसे तो बहुत होके रही अपनी जगह
हमने पायी है उसी दिल में सही अपनी जगह
हम हैं आज़ाद सदा और बँधे भी हरदम
तुम भी ठीक अपनी जगह, हम भी सही अपनी जगह
एक वीरान-सा मैदान शहर के आगे
क्या पता और दें हम, दोस्त ! वही अपनी जगह
यों तो होने को हुई उनसे हज़ारों बातें
फिर भी एक बात जो दिल में थी, रही अपनी जगह
शर्त रहती है किसे याद बहारों की, गुलाब !
छोड़िए जो भी कही, जो न कही, अपनी जगह