har subah ek taza gulab
चैन न आया दिल को घड़ी भर, हरदम वार पे वार हुए
आपने प्यार का खेल किया हो, हम तो बहुत बेज़ार हुए
तीर तो थे तरकश में हजारों, चल भी गये कुछ चल न सके
टूटके उन क़दमों में गिरे कुछ, कुछ हैं दिलों के पार हुए
हम न रहे तो कौन भला ये शोख़ अदायें देखेगा !
बाग़ की सब रंगत है हमींसे, फूल भले ही हज़ार हुए
एक हमीं को क्यों दुनिया ने दीवाने का नाम दिया
जबकि हमारी हर धड़कन में आप भी हिस्सेदार हुए !
अपनी पँखुरियों को छितराकर, आज गुलाब ये कहता था–
‘ख़ूब जिन्हें खिलना हो खिले अब, हम तो हवा पे सवार हुए’