har subah ek taza gulab
मेरी चाह उस नज़र में, कभी है, कभी नहीं है
ये तो चाँदनी है घर में, कभी है, कभी नहीं है
जो कहा–‘मिलेंगे फिर कब’, तो हँसा कि राम जाने
ये जूनून मेरे सर में, कभी है, कभी नहीं है
तेरे चाहने से क्या हो, मेरा दिल ही है कुछ ऐसा
इसे चैन उम्र भर में, कभी है, कभी नहीं है
मुझे बख़्श दे कि अब मैं, न क़दम मिला सकूँगा
मुझे होश इस सफ़र में, कभी है, कभी नहीं है
तेरे दिल में तो बसी है, ये महक गुलाब की ही
तू भले ही अब नज़र में, कभी है, कभी नहीं है