har subah ek taza gulab

लगा न होंठों से प्याला तो एक बार कभी
नज़र से हमने मगर पी ही ली उधार कभी

नसीब हो न सका चैन दो घड़ी के लिये
किसीने दिल का कोई छू दिया था तार कभी

‘गये जो फूल ही कुम्हला तो आके क्या होगा !’
हवा ये कहना, मिले तुझको जो बहार कभी

हम उनके प्यार को समझें तो किस तरह समझें !
कभी नज़र में, कभी दिल में, दिल के पार कभी

हमें तो चैन से दुनिया ने बैठने न दिया
हुआ गुलाब का काँटों में ही सिंगार कभी