har subah ek taza gulab

हर क़दम, यह राह मुश्किल और है
सामने मंज़िल के मंज़िल और है

प्यार की शोहरत हुई तो क्या हुआ !
प्यार में मरने का हासिल और है

कौन जाये छोड़कर अब दर तेरा !
हमने यह माना कि मंज़िल और है

हो भले ही ज़िंदगी गुड़ियों का खेल
जो न घबरा जाय, वह दिल और है

तू कहाँ इन ऐशगाहों में, गुलाब !
तेरे दीवानों की महफ़िल और है