har subah ek taza gulab

दिन गुज़रते गये, रात होती रही
ज़िंदगी ख़ुद-ब-ख़ुद मात होती रही

प्यार की कोई ख़ुशियाँ मनाता रहा
और आँखों से बरसात होती रही

हम ग़ज़ल में उसीको उतारा किये
टीस-सी दिल में जो, रात, होती रही

हमने देखी न उनकी झलक आज तक
और हरदम मुलाक़ात होती रही

लाख थी बोलने की मनाही, गुलाब!
भेंट फिर भी ये सौग़ात होती रही