har subah ek taza gulab

यों तो सभी से मेल-मुहब्बत है राह में
हरदम रहा है पर तेरा दर ही निगाह में

क्या-क्या न लेके आये ग़ज़ल में सवाल हम !
सबका जवाब उसने दिया एक ‘वाह’ में

तुझसे बड़ी भी चीज़ है कुछ तुझमें, ज़िंदगी !
तड़पा किये हैं हम जिसे पाने की चाह में

आते न छोड़कर कभी हम जिसको उम्र भर
मंज़िल कोई ऐसी भी एक आयी थी राह में

क्या क़द्र तेरी ज़र्द पँखुरियों की हो, गुलाब !
ख़ुशबू तो लुट चुकी है किसी ऐशगाह में