har subah ek taza gulab
ज़िंदगी में यह सवाल उठता है अक्सर, क्या करें !
बेसहारा, बेअसर, बेआस, बेपर, क्या करें !
जब क़यामत में ही होगा फ़ैसला हर बात का
तू ही बतला हम तेरे वादे को लेकर क्या करें !
दूर मंज़िल, साथ छूटा, पाँव थककर चूर हैं
और झुकती आ रही है शाम सर पर, क्या करें !
हाथ डाँड़ों पर नहीं, क़िस्मत को कहते हैं बुरा
नाव ख़ुद ही डूबती जाती, समंदर क्या करें !
पूछनी थी जब न पूछी बात, मुरझाये गुलाब
फूल अब बरसा करें उन पर कि पत्थर, क्या करें !