har subah ek taza gulab
राह हमको लिये जाती है कहाँ, कौन कहे !
फिर कभी लौटके आयेंगे यहाँ, कौन कहे !
आज तो धुन है पहुँचने की उनके पास, मगर
चैन सचमुच कभी पायेंगे वहाँ, कौन कहे !
क्या दिखी है कोई नेमत बड़ी इस दिल से भी
हमको यों छोड़के जाते हो जहाँ, कौन कहे !
डबडबा आयीं न हो सुनते ही आँखें उनकी
ज़िक्र जब भी मेरा आया है वहाँ, कौन कहे !
है वही बाग़, वही तुम हो, वही हम हैं ‘गुलाब’
उड़ गया प्यार का वह रंग कहाँ, कौन कहे !