kuchh aur gulab
दिल तो मिलता है, निगाहें न मिलें भी तो क्या !
कह दें आँखों से, न ये होंठ हिलें भी तो क्या !
उड़के ख़ुशबू तो उन आँखों की मिली है हरदम
हमको नज़रों के इशारे न मिलें भी, तो क्या !
उनके दिल में तो बसी तेरी ही रंगत है, गुलाब !
फूल लाखों जो बहारों में खिले भी, तो क्या !