kuchh aur gulab
धुन प्यार की जो समझे न उन्हें यह दिल की कहानी क्या कहिये !
कहना है जो कान में फूलों के, पत्तों की ज़बानी क्या कहिये !
ऐसे तो कभी उस महफ़िल में आयी थी हमारी चर्चा भी
हाथों से छिटककर टूट चुके प्याले की कहानी क्या कहिये !
आँधी वो चली है फूल तो क्या, बाग़ों का पता चलता ही नहीं
तितली के परों पर उड़ती हुई शबनम की निशानी, क्या कहिये !
आये तो यहाँ, इतना ही बहुत, अब आप ख़ुशी से रुख़सत हों
इस दिल को तड़पते रहने की आदत है पुरानी, क्या कहिये !
ऐसे तो, गुलाब! आया न कभी प्याला तुम तक उन हाथों से
जो बात मगर कह जाती है चितवन बेगानी, क्या कहिये !