kuchh aur gulab
प्यार की राह में रोने से तो बाज़ आयें हम
पर ये मुमकिन नहीं आखें भी न भर लायें हम
बाग़ में चारों तरफ़ मौत का सन्नाटा है
गंध पहले-सी गुलाब तेरी कहाँ पायें हम !
और होंगे तेरी महफ़िल में तड़पनेवाले
तू निगाहें भी फिरा ले तो चले जायें हम
इस सफ़र की कोई मंज़िल तो नहीं है, लेकिन
यह तो बतला कि कहाँ राह में सुस्तायें हम
आज की रात तो हर रंग में खिलते हैं गुलाब
फ़िक्र कल की किसे, आयें कि नहीं आयें हम !