kuchh aur gulab
साज़ यह छेड़ रहा कौन है, हमारे सिवा !
तेरी महफ़िल में बता, कौन है हमारे सिवा !
रोज़ चलता है कोई यों तो साथ-साथ, मगर
भेद अब तक न खुला, कौन है हमारे सिवा !
पास रहकर भी नज़र तेरी अजनबी क्यों है
दिल की धड़कन में भला कौन है हमारे सिवा !
यों तो हैं ख़ाक के पुतले ही हम, मगर, ऐ दोस्त !
आग से खेल सका कौन है हमारे सिवा !
दो घड़ी भी न तेरा रंग ठहरता है, गुलाब !
और उस पर ये नशा — ‘कौन है हमारे सिवा !’