pankhuriyan gulab ki
कोई जान अपनी लुटा गया, तेरी चितवनों के जवाब में
उसे गंध प्यार की ले उड़ी, नहीं और क्या था गुलाब में !
ये सवाल है मेरे प्यार का, ये जवाब है तेरे रूप का
तुझे क्या बताऊँ मैं, दिलरुबा ! जो लिखा है दिल की किताब में !
जो चढ़ा तो फिर न उतर सका, मेरी उम्र भर का ये था नशा
जिसे तू नज़र से पिला गया, उसे क्या मिलेगा शराब में !
जो कहा ये मैंने कि हमसफ़र ! कभी मेरी ओर भी हो नज़र
तो हँसा कि प्यार के नाम पर, यही ग़म हैं तेरे हिसाब में
कभी तुम हुए भी जो सामने, तो नज़र मिली न गले-गले
ये कसक, ये दर्द, ये तड़पनें, ये जलन हैं उसकी गुलाब में