sau gulab khile
चुप तो किसी भी बात पर रहते नहीं हैं हम
ऐसा ही कुछ है पर जिसे कहते नहीं हैं हम
छूटे हैं जबसे आपकी पलकों की छाँह से
पल भर कहीं भी चैन से रहते नहीं हैं हम
किश्ती भँवर में छोड़ दें, डाँड़ों को तोड़ दें
तेवर, ऐ ज़िंदगी ! तेरे सहते नहीं हैं हम
लोगों ने बात-बात में हमको दिया उछाल
शायर तो अपने-आपको कहते नहीं हैं हम
एक शोख़ की नज़र ने खिलाये हैं ये गुलाब
यों ही हवा की तान पे बहते नहीं हैं हम