sau gulab khile
नज़र अब उनसे मिलाने की बात कौन करे !
ख़ुद अपने घर को लुटाने की बात कौन करे !
लिया था नाम ही चलने का, भर आयी आँखें
अब उनसे लौटकर आने की बात कौन करे !
यही है ठीक, हमें आपने देखा ही नहीं
जगे हुए को जगाने की बात कौन करे !
हमारी बात को सुनकर वे हँसके बोल उठे–
‘सही है, बीते ज़माने की बात कौन करे !’
सही है, ठीक है, सच्चे हो तुम्हीं, हम झूठे
बहाना है तो बहाने की बात कौन करे !
गुलाब ! आपकी चुप्पी ही रंग लायेगी
सुगंध कहके बताने की बात कौन करे !