sau gulab khile
नहीं एक दिल की लगी छूटती है
भले ही भरी ज़िंदगी छूटती है
वे घबरा के यों मेरी बाँहों में आये
पहाड़ों से जैसे नदी छूटती है
नहीं है कोई और तो साथ मेरे
ये किसकी हँसी पर हँसी छूटती है !
पहुँच आज किन घाटियों में गया मैं !
यहाँ पर तो हर दोस्ती छूटती है
उमर सर झुकाये चली जा रही है
उमंगो की आवारगी छूटती है
हरेक साध ऐसे निकलती है मन से
कि जैसे कोई फुलझड़ी छूटती है
वही है सभी प्यार की रंगरलियाँ
ये दुनिया भरी की भरी छूटती है
सवेरे-सवेरे गये छोड़कर वे
नहीं मन से अब भैरवी छूटती है
गुलाब ! आपका दिल पिरोना था जिसमें
वही एक उनसे लड़ी छूटती है