sau gulab khile
प्यार में यों भी जीना हुआ
आँखों-आँखों ही पीना हुआ
चैन था मर भी जाते अगर
यह तो मर-मरके जीना हुआ
हमको तलछट मिला अंत में
वह भी औरों से छीना हुआ
शेर वैसे तो कुछ भी नहीं
जड़ गया तो नगीना हुआ
वे तो बस मुस्कुरा भर दिये
ख़ून अपना पसीना हुआ
अब तो पतझड़ है शायद, गुलाब !
ठाठ पत्तों का झीना हुआ