sau gulab khile
बात होनी थी होके रही
हमको दुनिया से खोके रही
वे भले ही हमारे न हों
ज़िंदगी उनकी होके रही
रात किसकी लटें खुल गयीं !
चाँदनी साँस रोके रही
कुछ न रिश्ता था उनसे, मगर
गाँठ-सी बीच दो के रही !
बचके निकले थे तुम तो, गुलाब !
याद काँटे चुभोके रही