sau gulab khile
हम अपनी उदासी का असर देख रहे हैं
ख़ुद आयें हैं चलकर वे इधर, देख रहे हैं
हम भी लगी जो आग उधर, देख रहे हैं
यों तो न देखना था, मगर देख रहे हैं
अब है कहाँ वो जोश कि बाँहों में बाँध लें !
आ-आ के जा रही है लहर, देख रहे हैं
ऐसे तो देखते उन्हें देखा न था कभी
आँखों में बेबसी का ज़हर देख रहे हैं
आया न काम कुछ यहाँ लहरों से जूझना
ख़ुद नाव बन गयी है भँवर, देख रहे हैं
शायद किसी में प्यार की धड़कन भी सुन पड़े
हर फूल में एक शोख़ नज़र देख रहे हैं
भाते न थे गुलाब उन्हें फूटी आँखों भी
मौसम का कुछ हुआ है असर, देख रहे हैं