kumkum ke chhinte
काल की मंजूषा से
कभी मैंने एक मोती चुराकर रख लिया था,
आज उसे तुम्हारी आँखों में देखकर
कुछ समझ में नहीं आता है।
क्या इन आँखों से उन आँखों तक,
इस मन से उस मन तक,
कोई अनदेखा पथ जाता है ?
काल की मंजूषा से
कभी मैंने एक मोती चुराकर रख लिया था,
आज उसे तुम्हारी आँखों में देखकर
कुछ समझ में नहीं आता है।
क्या इन आँखों से उन आँखों तक,
इस मन से उस मन तक,
कोई अनदेखा पथ जाता है ?