mere bharat mere swadesh
आज हिमालय के शिखरों में स्वतंत्रता ललकारती
आयी हिमगिरि लाँघ लुटेरों की टोली फुफकारती
चालीस कोटि की सुतों की जननी आज अधीर पुकारती
आज हिमालय के शिखरों से स्वतंत्रता ललकारती
शीश चढ़ा दे जो स्वदेश पर वही उतारे आरती
सोये अर्जुन भीम जग रहे, अब पांचाली जायगी!
जिसने आँख निकाली, उसकी आँख निकाली जायगी
छयासठ कोटि बढ़ी तो क्या, यह चीनी चाली जायगी
बना चासनी हिंद महासागर में डाली जायगी
भारत-भाग्य-भवानी जागी आज असुर संहारती
अंगद पग धर हुए हमारे सैनिक खड़े पहाड़ पर
पार हिमालय के कूदें जो पल में अभी दहाड़कर
बढ़ते बिना विराम तिरंगे ध्वज पेकिंग तक गाड़कर
इस चीनी अजगर के रख दें सारे दाँत उखाड़कर
जिनके साहस, शक्ति, शौर्य पर, जननी तन-मन वारती
अत्याचारी से दुर्बल को, शरणागत को ओट दी
साक्षी है इतिहास, न हमने कभी किसी पर चोट की
देखा किए ध्वंस तिब्बत का, मन में बड़ी कचोट थी
आज पाप का घट आ पहुँचा, सीमा पर विस्फोट की
वही रक्त को बूँद-बूँद बन हनूमान हुंकारती
साठ हजार सगर-पुत्रों की सैन्य जुटी तो क्या हुआ!
भूल गये जब खुली कपिल मुनि की त्रिकुटी तो क्या हुआ!
रेखा-रक्षित लुटी राम की पर्णकुटी तो क्या हुआ!
पूछो स्मर से–‘ शांत त्रिनेत्र-समाधि छुटी तो क्या हुआ ?’
बस मुट्ठी भर राख दिखी थी दक्षिण-पवन बुहारती
आज बँधी मुट्ठी-सा कसकर सारा भारत एक है
एक हमारी भारतीयता, एक हमारी टेक है
धर्म-धुरी, रथ-अभय, सारथी-साहस, सखा विवेक है
गति गंगा की धार हमारी, छेक सकेगा भेक है!
यह पीली आँधी निष्फल चट्टानों पर सिर मारती
हम अगस्त्य-सुत, सप्त सिंधुओं को पी जाते घोलकर
भौंह हमारी लीक खींच देती भूगोल-खगोल पर
बढ़ जाते हम तोपो के मुँह पर निज सीना खोलकर
दे सकते हैं रक्त हिमालय के बदले में तोलकर
हम उनकी संतान, वीरता जिनके चरण पखारती
सुर-मुनि-पूजित भूमि अमर यह, हिमगिरि जिसका भाल है
विंध्याचल-मेखला, चरणतल धोता जलधि विशाल है
शांत-सौम्य, चिर-तपस्विनी यह, क्रुद्ध हुई तो काल है
ढाल शांति की, स्वतंत्रता की चिर-प्रज्बलित मशाल है
जय जग-जननी, असुर-मर्दिनी, जय भारत, जय भारती
आज हिमालय के शिखरों से स्वतंत्रता ललकारती
शीश चढ़ा दे जों स्वदेश पर वही उतारे आरती
1962