ahalya

जीवन से क्या! सुरपुर से, कल्प वयस से क्या!
धन से, प्रभुता से, त्रिभुवन-विजयी यश से क्या!
विद्युत बन नस-नस में न बहा उस रस से क्या!
रमणी-अपांग-विद्धांग-प्राण परवश से क्‍या!
छूटें, छूटें, सब छूटें

क्षण अमर कि जिसमें प्रिया कंठ से लगी सलज
अधखुले, खुले, नयनों के जल से भरे जलज
क्षण अमर कि जिसमें वरण करूँ वे चरण विरज
भव-मुक्ति-द्वार, रति-सार, स्नेह को बने सहज
युग चल स्थल-कमल अनूठे’