ahalya

सहसा झलका सिंदूर भाल का रक्‍तारुण
शर क्रूर भाग्य का, सुषमा की सीमा अकरुण
वारुणी-कलश युग छोड़ गया फिर कौन वरुण ?
उमड़ा नस-नस में विद्युत का-सा वेग तरुण
बह गया विवेक बिचारा

यौवन का झंझानिल जिसमें पड़कर विलीन
कितनी गिरि-सरितायें अस्तित्व-सतीत्व-हीन
‘तरुणी, वरुणी-शर-विद्ध मृगी-सी, चकित, दीन
नर की करुणा-किरणों पर तिरती चपल मीन
कब रोक सकी है धारा