ahalya
स्मिति-सी किरणों पर प्राण पवन के आर-पार
नर्तित अमूर्त वह जग का शाश्वत मूर्तिकार
जड़-चेतन मिलते प्रेमाकुल बाँहें पसार
सर-सरित, गगन-भू, जलधि-क्षितिज, छायांधकार
चाँदनी-चाँद, तट-लहरी
खग-खगी चोंच में चोंच दिये कामातुर-से
तरु-बेलि केलि-रत, सहज सुवेष्ठित उर-उर से
गाता रसाल पर नर-कोकिल पंचम सुर से
चौंका देती जिसको क्षण-क्षण क्वण-नूपुर से
मंजर-मंजीरित भ्रमरी