ahalya
प्रेयसी वही जो वय-स्नेहाकुल, सजल-प्राण
मानस के तट तिर आयी उस दिन चिर-अजान
रागिनी वही यह आज विवादी-स्वर-प्रधान
पौरुष की हँसी उड़ाती-सी विपरीत-तान
स्वर के पर खोल रही थी
अपराधी-सा पत्नीत्व खडा नत-नयन मौन
यौवन अल्हड़-सा कहता, ‘इसमें पाप कौन!’
हँसती सुन्दरता, ‘अपना-अपना दृष्टिकोण’
चेतना भीत भी पिये प्रीति की सुरा-शोण
दीपक-सी डोल रही थी