ahalya

जीवन विषमय कर गयी हृदय की क्षणिक चूक
मन काँप उठा सुख का सपना पा टूक-टूक
पल में कैसा यह मन्त्र काम ने दिया फूँक
लज्जा-भय-च्युत नारीत्व लुटा जैसे मधूक
वंचक मधुपायी-कर से

कुंचित भौंहों पर झलकी चल ज्वाला-तरंग
‘स्वामी! अपराध क्षमा,’ कहती-सी दृष्टि-संग
चरणों पर पति के गिरी अहल्या शिथिल-अंग
मुनि चीख उठे–‘पाषाणी! यह क्या क्रूर व्यंग्य
विष पी डर रही लहर से?