ahalya

मुड़कर देखी सहसा पत्नी मुख-छवि विवर्ण
नयनों की झर-झर व्यथा, मर्म-लज्जा अवर्ण्य
पतझर की एकाकिनी लता ज्यों शेषपर्ण–
जीवन-भिक्षा को, भय-कंपित आपाद-कर्ण
धूसर अंचल फैलाए

तड़पा अंतर करुणा-ममता-आक्रोश-विकल
मुनि रहे आत्म-कातरता में जलते, निष्फल
फैला कपोल पर दोषी पलकों का काजल
नारी की दुर्बलता का साक्षी-सा प्रतिपल
कहता था अमित कथाएँ