ahalya

धनु-शर-परिकर, शिर-मुकुट, पीत-पट, भूकुटि-वाम
शिंशुप-तनु, वृषभ-स्कंध, भुज-वल्लि-सरोज-दाम
मृदु-वय, किशोर, चित-चोर, युगल छवि गौर-श्याम
नव सिंह-कुमारों-सी निर्भव, मुनि सँग ललाम
जिसने भी देखी जाती

भूला सुधि प्रिय-परिवार-बंधु-दारा-धन की
गेह की, देह की, प्राणों की, तन की, मन की
छा गयी अवध में पीड़ा घर-घर बिछुड़न की
सब उमड़ पड़े झाँकी को रघु-कुल-जीवन की
ज्यों भरी नदी बरसाती