ahalya
सब फिरे वचन-आश्वस्त प्रजाजन कर जुहार
चल पड़ा यान लाँघता नदी, पर्वत, कछार
ताड़िका निशिचरी रणोत्सुका सुन समाचार
नभ-दिशि से टूट पड़ी रक्तिम जिह्वा पसार
शर खींच राम ने मारा
द्रुत स्वर्ग सिधार गयी माया-कृत-देह-छिन्न
रवि-कर जैसे कर देता तम के तार भिन्न
आश्रम से फेरा रथ मुनि ने पथ-विजय-चिह्न
सुन समाचार खिल पड़े अवध के लोग खिन्न
जग ने शुभ सगुन विचारा