ahalya
‘तुम साधन-हीन दीन जन के रक्षक, त्राता
जन-जन के अंत:-स्रोत, शक्ति-शुभगति-दाता
आदर्श-चरित, जय! निगमागम-से युग भ्राता
हो निर्बल अबसे कहीं न कोई दुख पाता
तुम निर्धन के धन आये
‘योगी ने देखा तुम्हें तुरीयावस्था धर
मुनि ने मन में, ऋषियों ने सृष्टि-व्यवस्था पर
घट-घट-वासी विभु तुम्हीं वैदिकों के ईश्वर
जय! मनुज-रूप, सुर-भूप, भक्त-भय-हर, सुखकर
तुम जग के जीवन आये