ahalya

‘मर्यादा जाग उठी धर्मों की लुप्त-प्राय
घर-घर में यज्ञ-हुताशन, समता, सत्य, न्याय
तुम आये प्रभु! बहुजन-हिताय, बहुजन-सुखाय
सन्देश धर्म का जिससे घर-घर फैल जाय
संसृति सब भाँति सुखी हो

‘कोई न काम-रत, स्वेच्छाचारी, शक्ति-भीत
संकलित, संतुलित, जन-जन के जीवन विनीत
रण जड़ तत्वों में, क्रीड़ा, कौतुक, हार-जीत
सबको सम, सहज धरा के धन, हिम, ताप, शीत
जन एक कहीं न दुखी हो’