ahalya

दिन बीते, बीती रात, प्रात फिर साँझ हुई
बन गयी प्रतीक्षा जैसे विष की बुझी सुई
निस्तेज अहल्या बिना छुई ज्यों छुईमुई
मकड़ी-सी पाशबद्ध जैसे ककड़ी कड़ुई
सोये से मानों जागी

कटि पर घट ले आलुलित-केश, सद्य:स्नाता
चल दी कौशिक-मख-भूमि जिधर थी विख्याता
थे जहाँ बसे सुर-मुनि-सुख-दाता, भव-त्राता
युग अस्ति-नास्ति-से गौर-श्याम, दोनों भ्राता
जन-सेवा-हित गृह-त्यागी