meri urdu ghazalen
मिलता ही नहीं जो खुलके कभी, परदे से इशारा करता है
सूरत भी भला उस जालिम की, आँखों में बसाकर क्या होगा !
मिलना है अगर तो सामने आ, कुछ हम भी उठें, कुछ तू भी उतर
यों चाँद, सितारों से हरदम, आवाज़ लगाकर क्या होगा !
मिलता ही नहीं जो खुलके कभी, परदे से इशारा करता है
सूरत भी भला उस जालिम की, आँखों में बसाकर क्या होगा !
मिलना है अगर तो सामने आ, कुछ हम भी उठें, कुछ तू भी उतर
यों चाँद, सितारों से हरदम, आवाज़ लगाकर क्या होगा !