meri urdu ghazalen
यह सदा आती है आधी रात को उस पार से
मरके भी राहत नहीं मिलती ख़याले-यार से
गुल से क्या निस्बत मुझे, कैसी गुज़ारिश ख़ार से !
कतरये-शबनम हूँ लो रुख़सत हुआ गुलज़ार से
इंतजारों में गँवा दी, ज़िन्दगानी नामुराद,
यह न समझे, ख़ामुशी थी दो क़दम इक़रार से
चाक कर देगी कज़ा दम में, नहीं मालूम यह,
सी रहा हूँ दामने-हस्ती हवा के तार से
ऐसी शर्मीली निगाहें, ऐसा अलसाया शवाब,
चाँदनी जैसे बुलाती हो समंदर पार से
हुस्न की तो हद नज़र तक, इंतहा क्या इश्क की !
लज्जते-दीदार कम है हसरते-दीदार से
दिल की धड़कन तेज़ कुछ हो गयी तो क्या हुआ !
काँप उठती है क़यामत भी तेरी रफ्तार से