roop ki dhoop
कश्मीर
हर कहीं अमृतमयी धारा है
आप विधि ने जिसे सँवारा है
स्वर्ग का एक खंड है कश्मीर
ज्योतिमय मुकुट यह हमारा है
एक तस्वीर ख़्वाब की-सी है
एक प्याली शराब की-जसी है
चाँद का रूप, रंग केसर का
पंखड़ी ज्यों गुलाब की-सी है
कंठ का हार हिमवती का यह
भाल का रत्न-जड़ित टीका यह
काँपता मुकुर प्रकृति-बाला का
तैरता हंस भारती का यह
ले रहा व्योम बलायें इसकी
चूमती पाँव, घटायें इसकी
मेघ के चँवर डुला, मोती से
भर रहीं माँग हवायें, इसकी
चाँदनी की किरण धरे जल में
तैरती अप्सरा कमल-दल में
प्रात होते सभीत जा छिपती
घाटियों के सुनील अंचल में
चोटियों पर हँसी चमक उठती
शून्य में पायलें झमक उठतीं
दुग्ध-से गौर निर्झरों के बीच
देह की द्युति-तड़ित् दमक उठती
मखमली चोलियाँ कहीं सरकीं
क्यारियाँ फूल उठीं केसर की
शीत से भीत हिम-गुफाओं की
रूप की धूप फुदकती फिरती
चाँदनी के उफान-सी डल’ झील
नावघर हैं कि मेघ-शावक नील
तिर रहे पद्म-पत्र-से भूखंड
भीत, नागिन,2 कहीं न जाये लील
शांति भी शांति यहीं पाती है
भूमि आकाश छुए जाती है
उर्वशी की बिछी भुजाओं-सी
शैल से नदी उत्तर आती है
सेव के बाग़, चिनारों की पाँत
फूल जैसे वसंत की बारात
प्रेम का स्वप्न-लोक है कश्मीर
ईद का दिवस, दिवाली की रात
हैं सफेदे सपाट सीधे-से
शीत के संतरी उनींदे-से
बर्फ के फूल कि तमगे तन पर
झर रहे रत्न-कण अबींधे-से
हर उपल से उमड़ रही जलधार
हर तरफ नील झील का विस्तार
झाँकती गोल, गुलाबी मुखड़े
हर सदन इंद्रपुरी का-सा द्वार
घाटियों से घिरा घना कश्मीर
प्रकृति का हरित पालना कश्मीर
छाँह करता समस्त भारत पर
हिम-धवल छत्र-सा तना कश्मीर
मैं प्रवासी कि जा रहा हूँ आज
शून्य में टूट रही-सी आवाज़
स्वप्न का ताजमहल मिटता-सा
कब्र में लौट रही-सी मुमताज
रात का अंधकार बजता है
स्वप्न में ज्यों सितार बजता है
नेत्र में एक ख़ुमारी-सी है
प्राण का तार-तार बजता है
काँपता तीर बन गया हूँ मैं
प्राण की पीर बन गया हूँ मैं
शीत हिम-अंग, रंग केसर-सा
आप कश्मीर बन गया हूँ मैं
अश्रु-हिम की फुहार मेरी है
घाटियों में पुकार मेरी है
चाँद-सा शून्य में टँगा मैं आज
नीलिमा यह अपार मेरी है
दर्द मेरा कि जम गयी ज्यों झील
प्यास मेरी कि बही झेलम नील
रात रोती चिनारकुंजों की
स्वप्न मेरा कि गयी धरती लील
साँस का भग्न तँबूरा मेरा
एक भी गीत न पूरा मेरा
रूप का क्षितिज बहा जाता है
व्योम का पंथ अधूरा मेरा
घाटियों में घुटा-घुटा-सा मन
चाँद से कटा-कटा-सा यौवन
वायु जैसे उसाँस निर्जन की
टूट-सा रहा झील का दर्पण
पुरुरवा स्वर्ग से फिरा मैं आज
अश्रु आँखों से ज्यों गिरा मैं आज
भग्न नक्षत्र कि बिजली का फूल
डूबता हूँ तिरा-तिरा मैं आज
1 कश्मीर की सुप्रसिद्ध डल झील।
2. नागिन झील जिसमें तैरते हुए भूखंडों पर खेती होती हैं।
1964