aayu banee prastavana
आज मेरे ओंठ पर तिरती सुलगती प्यास किसकी!
आज मेरी चेतना की साँस में यह साँस किसकी
नेत्र दो किसके चमकते इन नयन के निर्झरों में!
वेदना किसके स्वरों की आज यह मेरे स्वरों में!
प्राण में रह-रह कसकती मूर्ति एक उदास किसकी!
प्यार यह कैसा कि जिसके स्पर्श से मन डर रहा है!
ज्योति यह कैसी कि जिसका ताप बेसुध कर रहा है!
छू रही बरबस अधर को यह अधीर उसाँस किसकी !
वह न मनमोहन यहाँ जिसकी विकल आराधिके तुम!
आ गयी किस वेणु-वन में, ओ रसीली राधिके! तुम
स्नेह-छलना, कर रही है यह निठुर परिहास, किसकी!
आज मेरी चेतना की साँस में यह साँस किसकी!
1965