aayu banee prastavana

न तो किसी कुंतल से उलझा, न तो कहीं गलहार हो गया
नहीं किसीके मन को भाया, जीवन ही बेकार हो गया

रूप और सुषमा का क्‍या, जब नहीं देखनेवाली आँखें!
मिला न मन का गगन किसीका, निष्फल क्‍या न विहग की पाँखें!
जीवन में न तरंगित यौवन, यौवन में न तरंगित आशा
मरु के उर में ऊँघ रही ज्यों अनसूँघी चंदन-तरुशाखें

कभी किसीका प्यार न पाया, तिल-तिल जलकर क्षार हो गया

लुटा चुका सँग-सँग जो लाया, लाल, जवाहर, हीरे, मोती
रातों जगकर अलख जगाया, जब सारी दुनिया थी सोती
अनजाने भी फिरीं न पर वे मेरी ओर पुतलियाँ श्यामल
कंचन-भीत उठा ली जिसने, देखा, जीत उसीकी होती

पत्थर की चट्टानों पर बलि, फूलों का संसार हो गया

अब तो बिना तुम्हारे, मेरा एक घड़ी जीना दूभर है
जलती हुई धरा नीचे है, जलता हुआ गगन ऊपर है
बिना सहारे, बिना पुकारे, बहुत चल चुका मैं मन मारे
कहीं पाँव लड़खड़ा न जायें, अब ईमान तराजू पर है

भू की प्राचीरों में बंदी नभ का राजकुमार हो गया

न तो किसी कुंतल से उलझा, न तो कहीं गलहार हो गया
नहीं किसीके मन को भाया, जीवन ही बेकार हो गया

1958