aayu banee prastavana
मैं तो घायल हुआ तुम्हारी मंद, मधुर मुस्कान से
तुम भी मेरे लिए एक पल अश्रु बहाती होगी!
जीवन का उद्देश्य मिल गया ज्यों ही तुमको देखा
हृदय-निकष पर खिंची कनक-सी बाँकी स्मिति की रेखा
केवल मेरे लिये उतर जो आयी नभ-सोपान से
आज हँसी वह किस ग्रीवा को हार पिन्हाती होगी!
बड़ी-बड़ी काली आँखों का मुड़-मुड़कर हँस-खिलना
लज्जा के मृदु हिलकोरों से अधर-चिबुक का हिलना
पल-भर तड़ित-दीप्ति मुख पर, फिर भाव वही अनजान-से
यह अलभ्य छवि, प्राण! तुम्हारी, किसे न भाती होगी!
सत्य नहीं होते, यौवन देखा करता जो सपने
मैं तो बिठा चुका हूँ तुमको मन-मंदिर में अपने
रूप-ज्योति की मधु-सुषमे ! तुम कभी न जाना प्राण से
स्मृति का यज्ञानल सेएगा यह वियोग का योगी
मैं तो घायल हुआ तुम्हारी मंद, मधुर मुस्कान से
तुम भी मेरे लिए एक पल अश्रु बहाती होगी!
1954