ahalya
स्वप्नोत्थित-सी संकुचित सेज की ओर चली
तारिका-सदृश मधुमय निशीथिनी की पहली
स्पंदित-उर, वंदित-भाल, विनत- भ्रू-कंजकली
नभ-नील-पटी पर जैसे ज्योत्स्ना-घनावली
विधु-निकट बढ़ी जाती हो
‘जल-राशि-विपुल, उद्देलित, उच्छल-चपल-लहर
सरिता सकाम जैसे सागर के मिलन प्रहर
‘पछताती-सी, पग-पग पर रुक-रुक, ठहर-ठहर,
भौंरों-सी तम-पुतलियाँ फिराती द्रुत जिन पर
अरुणिमा चढ़ी आती हो