ahalya
उन्मत्त शिरायें, शतमुख उर-शोणित-प्रवाह
नव प्रिया, नवल मधु-निशा, नव्य यौवन, उछाह
सुरपति तस्कर-सा भीत प्रीति के अतल थाह
रख पाऊँगा सुरपुर में यह सौंदर्य, आह!
रक्षित मुनि-रोषानल से’
स्पंदित साँसों में पुलक-शेष कोमल शरोर
काजल-सी फैली चितवन ज्यों कहती अधीर
‘यह निराधार तरणी-सा जीवन त्यक्त-तीर
मँझधार बीच तुम छोड़ न देना इसे, वीर!
छवि-सुरा आज पी छल से’