ahalya

पल में विद्युत्-सा कौंध गया निशि का प्रसंग
वह छद्म प्रात का ढंग, अचानक स्वप्न-भंग
नख-शिख तनु में व्यापी जैसे ज्वाला-तरंग
रक्ताभ नयन, आनन पर क्षण-क्षण चढ़ा रंग
अपमान, घृणा, पीड़ा का

‘मैं क्षीणकाय, नि:संबल, निर्बल, संन्यासी
तुम वज्रायुध , स्वर्गाधिप, नंदन के वासी
इस पर भी बुझी न तृषा तुम्हारी सुरसा-सी
कर गए मलिन चोरी से घर आ, मधुहासी–
यह सुमन स्नेह-क्रीड़ा का