ahalya

सरयू के पावन तीर जहाँ मुनि-मन-भावन
प्रगटे संपूर्ण कला में स्वयं पतित-पावन
जन-रव उमड़ा था सावन का ज्यों जल-प्लावन-
कौशिक-दर्शन को, मृग-दृगियों के क्रीड़ा-वन
थे भवन-भवन छवि छाये

कुंतल में पहली किरण भानु की अरुण साज
थी बनी अयोध्या मानो सीमंतिनी आज
धारा सित उर पर रही कुंद-श्रक-सी विराज
स्वागत को चारों कुँवर, सचिव, सैन्यप-समाज
थे गुरु वशिष्ठ-सँग आये