ahalya
अभिषिक्त किये जाते पावन वैदिक सुर से
दिख पड़े दूर ब्रह्मर्षि आ रहे आतुर-से
सब भुला पुरातन द्वेष, हर्ष-गदगद सुर से-
परिचय देते ले चले अतिथि को सुरगुरु-से
नृप-गुरु वशिष्ठ कर आगे
भावी का धनुष-भंग, सीता-राघव-विवाह
किंवा रावण-जय कर फिरने-सा महोत्साह
पगतल-नत सानुज राम-रूप मुनि थके थाह
‘ताड़िका-सुबाहु-विजय की इनसे करूँ चाह !!
संशय, भय, विस्मय जागे