ahalya

‘ये मूदुल अल्प-वय बाल कमल के दल जैसे
दिग्गज मदांध दुर्दात भीम दानव वैसे
इनसे भीषण रिपु-शक्ति विजित होगी कैसे?
गूँजेगा विश्व भला फिर देवों की जय से?
होगी दिक्-दिक् मख-पूजा ?

यह क्षीण अयोध्या सागर की-सी दीन लहर
ले पायेगी त्रिकूट-स्थित लंका से टक्‍कर’
ठंडे लोहे-सी मन की द्विविधा से कातर
मुनि पंथहीन यात्री-से पलभर गये ठहर
भय से निस्तार न सूझा