ahalya

दिख पड़ी सामने सरयू निर्मल पुण्य-पाथ
तब कहा राम ने पुरवासी-दिशि जोड़ हाथ
‘अब फिरें आप यों विकल न होंगे अवध-नाथ!
मैं लौटूंगा द्रुत, द्रुततर, द्रुततम बंधु साथ
मुनि का आदेश वहन कर

‘खल-दमन, संत-जन-रक्षण-हित है प्रभुताई
आशिष दें, भूलूँ नहीं क्षात्र-व्रत मैं, भाई!
सेवा में ही दी मुक्ति मुझे तो दिखलाई
है ध्येय, पोंछ प्रति दृग के आँसू दुखदायी
निर्भय कर दूँ भव-अंतर