ahalya

दशरथ सुनते ही हर्ष-प्रीति से उठे ललक
रथ में मानो मिल गयी राम की श्याम झलक
माताओं ने सोच्छूवास पोंछकर सजल पलक
फिर-फिर पूछी पथ-कथा सारथी से, “कब तक-
लौटेंगे सुत कानन से?

“लघु-वयस, सलोने, फूलों-से कोमल, किशोर
कैसे झेलेंगे वन का जीवन कठिन घोर
निःसैन्य बाल वे कहाँ निशाचरदल अथोर!
सूझी न, हाय! मुनि को मख-रक्षण-युक्ति और
पुतली ले गये नयन से!