ahalya

गुण-शील-रूप-व्रत एक, राम-प्रतिछवि ललाम
लघु भ्राता-सँग आ गए भरत ज्यों फिरे राम
हँस बोले, ‘प्रभु त्रिभुवन-नायक से बचे वाम
सुर, असुर, नाग, नर, ऐसा कहीं न शक्ति-धाम
जननी! मत तनिक बिचारें’

कौसल्या ने पुलकित प्राणों से लिया लगा
आनन युग सुत का निश्छल! पावन, स्नेहरँगा
बोली गदगद्, ‘प्रिय तुमसे बढ़कर पुत्र सगा!
रहता तुममें ही राम-लखन का हृदय टँगा
तुम कभी न उनसे न्यारे’